आप में से अधिकतर लोगों को सुबह उठते ही शौच जाने की आदत होती है। आमतौर पर देखा जाए तो यह सही भी है लेकिन कई लोग ऐसे होते हैं जो दो दिनों में एक बार ही शौच के लिए जाते हैं वहीँ कुछ तो ऐसे हैं जो सप्ताह में सिर्फ एक बार शौच क्रिया करते हैं। ऐसा सब देखते हुए यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर हमें कब और कितनी बार शौच के लिए जाना चाहिए? रोजाना शौच करना और हफ्ते में एक बार शौच करने में कौन सा तरीका सही है? अगर आप पूरे दिन में एक बार भी शौच के लिए नहीं जा रहे हैं तो परेशान न हों क्योंकि इसकी वजहें हो सकती हैं। कई लोग तो दो तीन दिन में सिर्फ एक बार ही शौच के लिए जाते हैं। यह मुख्य तौर पर आपके शरीर, खानपान और रहन सहन पर निर्भर करता है। डॉक्टरों के अनुसार, जो लोग दो-तीन में एक बार या हफ्ते में एक बार शौच जाते हैं उनमें अधिकतर वे लोग होते हैं जो घर से दूर किसी हॉस्टल में या अकेले रहते हैं।अगर आप हफ़्तों तक शौच के लिए नहीं जाते हैं तो हो सकता है आपकी कोलन में मल पदार्थ जमा हो गया हो और नमी कि कमी के कारण हो सकता है यह इतना कठोर हो जाए कि इसे बाहर निकालना मुश्किल हो जाये। ऐसी स्थिति उन मरीजों में ज्यादा होती है जो काफी दिनों तक किसी वजह से बिस्तर पर पड़े रहते हैं। इस हालत में एनल कैनल और रेक्टम एक दिशा में न होने के कारण मल का खुद से बाहर निकल पाना बहुत मुश्किल हो जाता है। ऐसे लोग लम्बे समय से कब्ज़ से पीड़ित रहते हैं। शरीर से मल का बाहर निकलना सिर्फ आपकी डाइट पर ही निर्भर नहीं करता बल्कि आप शौच करते समय कैसे बैठते हैं उस पर भी निर्भर करता है। डॉक्टर्स के अनुसार जब आप इंडियन स्टाइल वाले टॉयलेट में बैठते हैं तो वो पोजीशन मल त्याग करने कि सबसे सही पोजीशन है। उस पोजीशन में एनल कैनल और रेक्टम दोनों बिल्कुल एक सीधी लाइन में आ जाते हैं जिससे मल का बाहर निकलना आसान हो जाता है।
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